शनिवार, 7 सितंबर 2013

मातृ देवो भव !!

माता बालक की प्रथम गुरु होती है । व्यक्ति मातृ-ऋण से कभी मुक्त नहीं  हो सकता । बडे से बडा धनी व्यक्ति या कोई राजा महाराजा भी मां के ऋण से उऋण नहीं हो पाया । 
एकबार राजा टोडरमल ने अपनी मां से कहा कि मां अब मेरे पास बहुत धन दौलत है । मैं मातृ-ऋण से मुक्त होना चाहता हूं । बताइये मैं आपके लिये क्या कर सकता हूं ? बताइये कितनी धन -दौलत आपको चाहिये ? मां ने मुस्कुरा कर कहा-"बेटा ! तू सच में मातृ-ऋण से मुक्त होना चाहता है? ......... ठीक है.. मैं बूढी हो गई हूं ,मुझे रात को प्यास लगती है । आज रात को मेरे पास सो जाना । तुम मातृ-ऋण से मुक्त हो जाओगे ।" 
राजा टोडरमल ने अपनी मां से कहा - "बस इतनी सी बात मां ...? अरे मैं आपके लिये नौकरों की फ़ौज खडी कर दूंगा ।" मां ने कहा -"नहीं बेटा ! यदि मातृ-ऋण से मुक्त होना है तो तुम्हें ही मेरे साथ सोना पडेगा।"
राजा टोडरमल रात को मां के पास सो गया । जब उसे गहरी नीन्द आ गई तब मां ने उसे उठाते हुए कहा-बेटा ! प्यास लगी है । जो सभी कामों के लिए नौकरों पर आश्रित रहता था, वह बेटा स्वयं उठकर मां के लिये पानी लेकर आता है। थोडा सा पानी पीकर मां सोने का अभिनय करनें लगी । जब मां को लगा कि बेटा फिर से गहर्री नीन्द में सो गया तो मां उसे फिर उठाकर पानी मांगा । थोडा सा झलाते हुये बोला-क्या मां ! गहरी नीन्द आ गई थी । आपने तो परेशान कर दिया । मां  ने थोडा सा पानी पीकर बेटे की सोने की जगह गिरा दिया । अब तो बेटे का गुस्सा फूट पडा । बोला -"मां ! तुमने तो मेरा बिस्तर ही गीला कर दिया । मां ने कहा - बेटा ! बूढी हूं ना... हाथ कांपने से पानी गिर गया ।  बेटे ने कहा - नहीं मां ! ये तो आप मुझे जान-बूझकर परेशान कर रही हो...!! मां बोली -बेटा ! तू एक ही रात में चार-पांच बार बिस्तर गीला कर देता था । मैं तुम्हें सूखी जगह सुला कर खुद गीली जगह सोती थी । क्या तू बता सकता है कि कितनी रातें मैने जागकर काटी है ? तुम ही मातृ-ऋण से मुक्त होना चाहते थे । कुछ ही घण्टों मैं परेशान हो गये ।" राजा टोडरमल समझ गया कि हम कभी भी मातृ-ऋण से मुक्त नहीं हो सकते । उसका घमण्ड चूर चूर हो गया । मां के पैरों  में गिर कर क्षमा मांगी और आजीवन मां की सेवा करता रहा ।

परन्तु आज की युवा पीढी तो सेवा तो दूर  मां  बाप को ही अपने से दूर कर देती है । जो मां नौ  महीनों तक बच्चें को अपने गर्भ में रखकर हमें इस पृथ्वी पर लाती है , वो हमें बुढापे में देखने को भी तरसती है। 


जब बच्चा किशार अवस्था में पहुंचता है तो उसे माता,पिता,गुरुओं और अन्य लोगों की बात पर झुंझलाहट होनें लगती है । हम वर्ष में एक बार मदर्स डे तो मना लेते हैं । वो भी अब केवल सोशल मीडिया तक सिमट कर रह गया है । 

क्या हम जानतें हैं कि बच्चे को जन्म देने में मां को  कितनी पीडा होती है ? नहीं... तो जानियें । यदि किसी व्यक्ति की सारी हड्डियां टूट जाये उसमें जितनी पीडा होती है उससे भी  लगभग 40%  ज्यादा पीडा मां बच्चे के जन्म के समय सहती हैं । और हम .......... उसी मां को भुला देते हैं । पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण करने वाले हम मां के द्वारा किये गये उपकारों को उनकी जिम्मेदारी मानते हैं । हमें लगता है उन्होंने क्या कुछ नया किया है? ये तो सब करते हैं ।   अरे मां को  हमने पहले ही मम्मी कहना शुरु कर दिया है । जानते हो मृत शरीर पर कैमीकल का लेप लगा कर रखी जाने वाली डैड बोडी "ममी" कहलाती है और उसी से हमने "मम्मी" शब्द ले लिया । 
यदि आज हम किसी को कहते हैं कि आप अपनी माताजी को मम्मी मत कहो तो उन्हें हम ओल्ड फैशन वाले लगते हैं और अपनी जन्मदायिनी को माताजी कहने में शर्म आती है । पिताजी को तो पहले से ही "डैड" कहकर हमनें मृत मान लिया है ........ यदि माता पिता को माताजी, पिताजी कहनें से हम ग्वार,असभ्य लगते हैं तो ऐसे पढे लिखे पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण करने वालों से तो हम असभ्य ही अच्छें ........!!!!!


मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

अन्ना हजारे

अन्नाहजारेवर्याः ७४ वर्षीयः सन्नपि आन्दोलनरतः अस्ति तर्हि युवानः कथं न?

शनिवार, 5 नवंबर 2011

जयतु संस्कृतम्